मंगलवार, 12 सितंबर 2017

 चले अपनी रूह की निज नजर से तीजी भोम की पड़साल की अलौकिक लीलाओं के दर्शन करे                        
आप पिया श्री राज जी श्री श्यामा जी प्रातः काल पांचवीं भोम से उठ कर तीसरी भोम सब सखियों के संग पधारते हैं --उन समय के सुखों को याद कर मेरी रूह जब प्रीतम श्री राज जी श्री श्यामा जी सब साथ को ले तीसरी भूमिका के नूरमयी चौक २८ थम्भ के चौक में आन खड़े होते हैं                        
 अब यहाँ से हमारे युगल स्वरूप श्री राज जी श्री श्यामा जी चलेंगे तीजी भूमिका की पड़साल की और --वहां चलने से पहले श्री राज जी रूहों को दिखा रहे हैं  28  थम्भ के चौक की अलौकिक नूरी शोभा --देख तो मेरी सखी घेर कर नूरमयी थंभों की सोहनी झलकार ,उनसे उठती किरणे सम्पूर्ण  वतन को रोशन कर रही हैं --ऊपर नूरी चंदवा की जगमगाहट और नीचे अति कोमल पशमी गिलम ---और देख मेरी सखी दायीं और दूसरी हार मंदिरों का लगता मंदिर कैसे आसमानी रंग में सुशोभित हैं यह तेरी श्यामा जी महारानी के सिंगार का मंदिर हैं
अब यहाँ से हमारे युगल स्वरूप श्री राज जी श्री श्यामा जी चलेंगे तीजी भूमिका की पड़साल की और --वहां चलने से पहले श्री राज जी रूहों को दिखा रहे हैं  28  थम्भ के चौक की अलौकिक नूरी शोभा --देख तो मेरी सखी घेर कर नूरमयी थंभों की सोहनी झलकार ,उनसे उठती किरणे सम्पूर्ण  वतन को रोशन कर रही हैं --ऊपर नूरी चंदवा की जगमगाहट और नीचे अति कोमल पशमी गिलम ---और देख मेरी सखी दायीं और दूसरी हार मंदिरों का लगता मंदिर कैसे आसमानी रंग में सुशोभित हैं यह तेरी श्यामा जी महारानी के सिंगार का मंदिर हैं                        

अब श्री राज जी श्री श्यामा जी को साथ में ले कर बढ़ते हैं तीजी भोम की पड़साल की और --संग में हम सखियाँ भी हैं 
चलते समय गिलम की कोमलता को महसूस कर मेरी रूह --कितनी कोमल ,नरम गिलम मानो और भी कोमल हो धाम धनि का अभिनन्दन कर रही हो --आ पहुंचे 28  थम्भ के चौक की पूर्व किनार पर --चौक के ठीक आगे लगता चार मंदिर का लंबा एक मंदिर चौड़ा चबूतरा की शोभा देखे
 चार मंदिर के सोहने चौक से 28  थम्भ के चौक में उतरती सीढ़ियों की शोभा बेहद ही प्यारी हैं --प्रियतम श्री राज जी श्री श्यामा जी अपने पाँव मुबारक बढ़ाते हैं पहली सीढ़ी की और --ओहो मेरे धाम दूल्हा के नूरानी चरण ,उनकी नूरानी छबि,गौर वर्ण में लालिमा लिये मेरे महबूब के चरणारविन्द --सीढ़ी चढ़ते समय उनके आभूषणों की मधुर झंकार रूहों को घायल कर रही हैं                        

 अक्षरातीत श्री राज जी श्री श्यामा जी सब रूहों को संग ले चार मंदिर के चौक में आते हैं --चौक से 28  थम्भ के चौक में उतरती सीढ़ियों की शोभा तो रूहों ने महसूस की --अब देखे उत्तर दक्षिन दोनों दिशा में भी गली में सीढियां  उतरी हैं --दोनों दिशाओं में सीढ़ी की जगह छोड़कर कर नूरमयी कठेड़े की शोभा हैं इसी प्रकार से 28  थम्भ के चौक की और भी सीढ़ी की जगह छोड़कर कर नूरमयी कठेड़े की शोभा हैं --

चार मंदिर की नूरी शोभा में झिलते  अब चले दहलान की और श्री राज जी के संग --चार मंदिर के चौक से ठीक लगती दहलान की शोभा आयीं हैं                        
 चार मंदिर के चबूतरे के साथ मिलान करती चार मंदिर के दहलान धाम दरवाजे के ठीक ऊपर आयीं हैं --दो मंदिर की जगह तो हुई धाम दरवाजे की और एक एक मंदिर और ले कर चार मंदिर की दहलान की शोभा आयीं हैं --तो मेरी रूह दहलान के पूर्व पश्चिम दोनों किनारो  पर नूरी थम्भ झिलमिला रहे हैं --दहलान के उत्तर दक्षिन 3-3  मंदिर आएं हैं --मेरी रूह यह मंदिर भी श्री राज जी का प्रसाद हैं हम रूहों को --यह मंदिर भी समय आने पर दहलान रूप में परिवर्तित होकर रूहों को सुख देते हैं
 चार मंदिर के चबूतरे के समान चार मंदिर की दहलान भी तीन सीढ़ी ऊंची शोभायमान हैं --दोनों और आएं तीन तीन मंदिर भी तीन सीढ़ी ऊंचे हैं तभी तो देख मेरी रूह --मंदिरों से भीतर गली की और सीढियां उतरी हैं चांदा के रूप में --बाहिरी हार यह मंदिर भीतर गली से तीन सीढ़ी ऊंचे हैं तो वहां मंदिर के दरवाजे के आगे चांदा की शोभा आयीं हैं और चांदा से दोनों और गली में तीन तीन सीढियां उतरी हैं                        

 दहलान की शोभा देख आगे बढे तो आ पहुचे तीजी भोम की पड़साल पर --दस मंदिर की लंबी और दो मंदिर की चौड़ी --चांदनी चौक की और -यह नीचे जो दो मंदिर का चौक आया हैं और चौक के दोनों और चार मंदिर के लंबे चबूतरे आये हैं उन पर तीसरी भोम में जो एक छत आयी हैं वहीं हैं तीजी भोम की पड़साल

तीजी भोम की पड़साल की पूर्व किनार पर थंभों की शोभा आयीं हैं यह थम्भ वहीं हैं जो पहली भोम से चले आ रहे हैं --ठीक मध्य में हीरा के दो थम्भ दो मंदिर की दुरी पर आएं हैं और दोनों और क्रमशः माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के थम्भ सुशोभित हैं --


मध्य में हीरा की दो मंदिर अति सुंदर मेहराब में अति सुंदर माणिक के नूरी फूल --और दोनों और दो दो रंगों में खिली खिली मेहराबे --थंभों के  मध्य स्वर्णिम कठेड़े की शोभा                        
 श्रीराज-श्री ठकुरानी जी मध्य की मेहराब में खड़े होते हैं और दाएं बाएं की मेहराबों में 12000 सखियाँ खड़ी होती हैं -तीजी भोम की विशाल--अलौकिक जोत से झलकार करती हुई --शीतल सुगन्धित हवा के झोंके --ऐसे प्रीत भरे नूरी आलम में युगल स्वरूप श्री राज श्यामा जी मध्य में शोभित हीरा की दो मंदिर की मेहराब में खड़े होते हैं ..दायीं बाईं सखियाँ ..उमंग से भरी ,मुख्य प्रसन्नता से दमकते हुए --इन्हें समय सामने चांदनी चौक में पशु -पक्षी उमड़ उमड़ कर आते हैं --सभी जातियों के पशु-पक्षी --दिल में प्रियतम के दीदार की आस लेकर आते हैं --श्री राज-श्यामा जी की एक इश्क रस भरी नजर का दीदार पाकर उल्लसित हो उठते हैं --उन्हें सिजदा कर अनेक प्रकार के हुनर-कलाओं से प्रिया और प्रियतम को रिझाते हैं --इनके हुनर को देख -देख कर सखियाँ अति प्रसन्न होती हैं --हक़-हादी और सखियाँ खूब हँसते -हंसाते हैं ।तब नूर जमाल के आनंद मस्ती में आकर नूरी पशु-पंखी ,जिनकी सुंदरता का कोई पारा-वार नहीं हैं ,प्रेम की मस्ती में अलमस्त होकर नृत्य कर उठते हैं ।

ऐसे अखण्ड आनंद के समय प्रियतम श्री राज जी के इश्क की शराब में मदमस्त होकर बन-बगीचे ,मोहोलातें ,महल ,मंदिर ,आकाश ,जमीन सभी सिजदा करते हैं --इन समय बड़ा ही मनमोहक दृश्य दृष्टिगोचर होता हैं --और जमुना जी का नूरी जल और उनके उछालें लेती लहरें भी पिऊ का दीदार करना चाहती हैं --तब इन समय में अक्षरातीत श्री राज जी अपनी मेहर की नूरी दृष्टि से अमृत बरखा करते हैं --मेहर की नूरी इश्कमयी की बरखा में सब कोई भीग कर उल्लासित हो
दर्शन देने के बाद  सखियाँ श्री राज जी महाराज जी को चार मंदिर की दहलान में आभूषणों का श्रृंगार कराती हैं और श्री श्यामा जी का सिंगार 28  थम्भ के चौक  के दक्षिण दिशा में दूसरी हार के आसमानी मंदिर मे होता हैं |बाहिरी हार मंदिरों की जो 6000 मंदिरों की दो हारें आईं हैं --इन मंदिरों में सखियाँ एक दूजे को श्रृंगार कराती हैं झूम उठते हैं - --पिऊ-पिऊ,तुहि-तुहि की मीठी ध्वनि की झंकार से सम्पूर्ण परमधाम गुंजायमान हो जाता हैं



शनिवार, 12 अगस्त 2017

हौज कौसर की शोभा 

प्रणाम जी ,


एक बार फिर से 


हमारे सामने रंगमहल हैं और चलना हैं हौज कौसर --

रूह  के दिल की आवाज तो 

सुखपाल हाजिर --


उनमें सवार हो हम रूहें चली हौजकौसर तालाब -


सबसे पहले आकाश मार्ग से शोभा देखी--चांदनी चौक 


अमृत वन के तीसरे हिस्से में सुशोभित खुली चांदनी से युक्त चौक जो रंगमहल के मुख्य द्वार के सामने सुशोभित हैं --चांदनी चौक में बिखरी रेती मोती माणिक के भांति जगमगा रही हैं जिनका तेज आकाश तक झिलमिला रहा हैं --लाल हरे वृक्ष का नूर और 


शोभा देखते हुए हम मुड़ते हैं दक्षिन दिशा की और जहाँ रंगमहल से ठीक साढ़े चार लाख कोस की दुरी पर हौजकौसर अपार शोभा से शोभायमान हैं

अब उड़ान रंगमहल की दक्षिन दिशा में --सबसे पहले शोभा दिखाई धनि बट पीपल की चौकी की --आगे कुञ्ज निकुंज --फूलों की अपार शोभा --फूलों की सभी जोगबाई --कुञ्ज नेकुंज की अपार शोभा देखते हुए हौज कौसर तालाब के पश्चिम दिशा में आ पहुंचे --कुञ्ज वन की रेती में सुखपाल उतरें --उतरते समय भूखनो की मीठी झंकार उल्लास ,उमंग से भरी हम लाड़लियां लाहूत की
हौजकौसर के पश्चिम दिशा में कुञ्ज वन की रेती में हैं और यहाँ से देखते हैं हौजकौसर की शोभा --


सर्वप्रथम शोभा दिखाई देती हैं पुखराजी रोंस --आने जाने का बड़ा मार्ग जिनमें वृक्षों की दो हारें आयीं हैं जिनकी दो भोम आयीं हैं --वृक्षों की डालियों ने आपस में मिलान कर नूरी चंदवा किया हैं --पुखराजी रोंस कुञ्ज निकुंज की रेती से कमर भर ऊंची आयी हैं --हान्स हान्स पर उतरती सीढियां देखे --

सुन्दर ,मनोहारी तीन सीढियां चढ़कर पुखराजी रोंस पर आएं --500  मंदिर चौड़ी रोंस लंबाई में घेर कर हौजकौसर को घेरती हुई आयीं हैं


पुखराजी रोंस के आगे --भीतर की और वन रोंस आयीं हैं --इन रोंस में वृक्ष नहीं आयें हैं --इन वन रोंस के ऊपर से पुखराजी रोंस ने छत्रिमंडल किया हैं --
इन वन रोंस पर हौजकौसर तालाब की पहली शोभा देखिए --वन रोंस पर हौजकौसर के ठीक पश्चिम दिशा में 250  मंदिर का चौक आया हैं और चौक के दोनों और 250  मंदिर के लंबे चौड़े  तीन सीढ़ी ऊंचे दो चबूतरा आये हैं जिनकी उत्तर ,दक्षिन और पूर्व दिशा में सीढियां  उतरी हैं और पश्चिम में तो चबूतरे ढलकती पाल से मिल गए हैं -
                        अब ढलकती पाल --ये वन रोंस से तीन सीढ़ी ऊंची आयीं हैं --हान्स हान्स से वन रोंस से ढलकती पाल पर सीढियां चढ़ी हैं --


चबूतरा पश्चिम में ढलकती पाल से मिल गए हैं --चबूतरा के ठीक पश्चिम भाग में ढलकती पाल पर  देहुरियों की शोभा आयीं हैं --चार थम्भ उठे --उन पर सुन्दर मेहराब --नूरी छत --कलश देहुरी की अपार शोभा --

तो 750  मंदिर की चौड़ी ढलकती पाल के पहले हिस्से की शोभा यह देहुरियाँ हैं --दूसरे हिस्से में पड़साल आयीं हैं जिनमें वृक्षों की दो हारे आयीं हैं जिनकी मेहराबों में हिंडोले आयें हैं --पुखराजी रोंस के वृक्ष और पड़साल के वृक्ष आपस में मिलान करते हुए एक फूलों की छत बनाते हैं --

एक अनुपम शोभा --भीतर ताल तक सम्पूर्ण शोभा के ऊपर एक नूरी चंदवा तना हैं 

ढलकती पाल के तीसरे हिस्से में संक्रमणिक सीढियां आयीं हैं


वन रोंस से चबूतरों की अपार शोभा देखते हुए देहुरी की शोभा में रमन किया --पड़साल में हिंडोले झूल अब है संक्रमणिक सीढ़ियों में सम्मुख-


चढ़ती सीढियां --अति सुन्दर मनोहारी शोभा लिये --ऊपर नजर की तो फूलों का चंदवा शोभित हैं --सुगंधि का कोई पारावार नहीं --हंसते -खेलते ,हाथों में हाथ थामें भोम भर सीढियां चढ़ कर चौरस  पाल पर आन पहुंचे
चौरस पाल हजार मंदिर चौड़ी सुशोभित हैं --चौरस पाल के चार हिस्से हैं पहले हिस्से में घाट आयें हैं --पश्चिम में झुण्ड का घाट ,उत्तर दिशा में नव  देहुरी का घाट ,दक्षिण में तेरह देहुरी का घाट और पूर्व दिशा में सोलह देहुरी का घाट आयें हैं -

दूसरे हिस्से में पड़साल आयीं हैं जिनमें वृक्ष की दो हार आयीं हैं --

तीसरे हिस्से में देहुरियाँ शोभित है 

चौथे हिस्से में कटी पाल की सीढियां हैं

संक्रमणिक सीढियां चढ़कर चौरसपाल पहुंचे --चौरस पाल के इन पहले हिस्से में झुण्ड का घाट सुशोभित हैं --सीढियां चढ़कर खुद को 250  मंदिर के लंबे चौड़े चौक में देखा और दोनों हाथ 250  मंदिर के लंबे चौड़े कमर भर ऊंचे चबूतरे हैं 


-- नीचे जो वन रोंस पर जो चौक और चबूतरे आए है ठीक उन्ही की सीध मे मध्य 250 मंदिर का चौक है दाएँ बाएँ 250 मंदिर के लंबे चौड़े तीन सीढी उँचे चबूतरे आए है --चबूतरे से चारो दिशा मे सीढीयाँ उतरी है-- चारो कोनो मे वृक्ष आए है -- इन वृक्षों  ने एक चबूतरे पर आठ दीवार की है -- तो एक तरफ की शोभा देखे तो 250 मंदिर की जगह मे 125 मंदिर का द्वार है और दाएँ बाएँ 62/50-62/50 मंदिर की दीवार है -- यह दीवार विरिक्षो की है-- इसी प्रकार चारो और की शोभा है--                        
 झुंड का घाट की पाँच भोंम छटी चाँदनी है--चबूतरो की शोभा पहली भोंम मे ही है ! दोनो चबूतरो और चौक की देखन की बारह मेहराब है पर गिनती मे दस है -- एक चबूतरे मे आठ दीवार और दोनो मे मिलकर सोलह दीवार की शोभा भोंम दर भोंम पाँच भोंम तक है -- दीवारो मे आया चित्रामन की शोभा बेमिसाल है--फूलों पत्तियों की मेहराबें ,चंदवा ,फूलों -फलों की जोगबाई   हर और नूरी महक से सराबोर कर रही है                        
 रमणीय शोभा झुण्ड के घाट की --मध्य में मनोहारी चौक और चौक के दोनों और कमर भर ऊंचे चबूतरे पर वनों की ही मनोहारी दीवारे --चबूतरे की एक दीवार देखे तो मध्य में फूलों से सुसज्जित द्वार और दाएं बाएं वनों की ही दीवार --फूलों से महकती तीन सीढियां चढ़कर द्वार से भीतर गए तो प्यारी सी शोभा --चारो दिशा में चार मेहराबी द्वार --उनसे उतरती सीढियां --ऊपर नूरी छत --भोम दर भोम पांच भोम छठी चांदनी की शोभा आयी हैं --चबूतरे पर सुन्दर बादशाही बैठके --हौजकौसर के नूरी ,निर्मल जल जल में झिलना कर आप श्री राज श्यामा जी यहां सिंगार सजते हैं और हान्स विलास करते हैं --

इसी तरह से दूसरा चबूतरा भी शोभित हैं एक से बढ़कर एक शोभा ,साजो सामान --रूहों को अखंड सुख प्रदान करने के लिये --पांच भोम ऊंचे इन  घाट  की सम्पूर्ण शोभा नूरी ,कोमल फूल ,पत्तियों की आयीं हैं
हौजकौसर की चौरस पाल के प्रथम हिस्से के पश्चिम दिशा में झुण्ड के घाट की शोभा देख अब रूह आगे बढ़ती हैं --चौरस पाल के दूसरे हिस्से में -


इन दूसरे हिस्से में पड़साल की शोभा आयीं हैं --250  मंदिर की इन पड़साल 250  मंदिर की चौड़ी आयीं हैं --पड़साल में वृक्षों की दो नूरमयी हारें आयीं हैं जिनकी मेहराबों में हिंडोलों की अपार शोभा आयीं हैं 
पड़साल की शोभा अद्भुत हैं --नूरमयी वृक्षों की दो हारें और उनका फूलों का छत्रिमंडल --नूरी हिंडोले --कहीं खड़े होकर हींचने वाले झूले तो कहीं सेज्या हिंडोले तो कहीं सिंहासन हिंडोले --और इन पर श्री राज श्याम जी के संग झूलने के अखंड सुख 
 पड़साल की शोभा देखते हुए आगे बढ़ते हैं तो चौरस पाल के तीसरे हिस्से में देहुरियों की शोभा आयीं हैं --हान्स हान्स के मध्य में 250  मंदिर की लंबी चौड़ी रंगों नंगों से महकती देहुरियाँ --                        
 घेर कर 128  हंसो में 128  देहुरियाँ शोभित हैं --हर हान्स में नया ही रंग ,शोभा
और अब देखते हैं देहुरियों के आगे सुन्दर चबूतरे आयें हैं जिनके दोनों और से कटी पाल की भोम भर सीढियां उतरी हैं
झुण्ड के घाट के पूर्व में अर्थात ताल की और पड़साल को पार करके जो  घाट के चबूतरो के सामने देहूरियाँ आई उनके मध्य से 250 मंदिर की जगह ले कर भोंम भर की सीढी उतरी है--भोंम भर सीढीयाँ उतर कर 750 मंदिर के लंबे 250 मंदिर के चौड़े चबूतरे अपर आइए वहाँ से फिर तीन सीढी उतर ताल रोंस पर आइए


एक रास्ता और है जो घाट के सामने आयीं देहूरियो और सीढी के सामने चौरस पाल पर 750 मंदिर का लंबा और 250 मंदिर का चौड़ा चान्दा है जिसके दोनो तरफ भोंम भर सीढी उतरी है ! इन कटी पाल की सीढीयों से भोंम भर उतर पाल पर आए वहाँ से तीन सीढी उतर जल रोंस पर आइए
इस नक़्शे में देखे --झुण्ड के घाट के आगे पड़साल ,वृक्षों की हारें --आगे देहुरियाँ --घाट के चबूतरों के सामने आयीं देहुरियों में देखन की 12  मेहराब --गिनती की दस --मध्य की मेहराब से उतरी सीढियां --

झुण्ड के घाट की शोभा देख रूह जल रोंस पहुँचती हैं --अब शोभा बसानी हैं उत्तर दिशा में आये नाव देहुरी के घाट की तो रूह जल रोंस से अपनी बायीं और मुड़ कर उत्तर दिशा की और चलती  हैं --साथ साथ शोभा भी दिल में दृढ करती हैं रूह जल रोंस या ताल रोंस की जिससे हाथ लगते जल की शोभा हैं --दूसरे शब्दों में कहे तो हौज  कौसर के ताल को घेर कर आयीं रोंस जल के बराबर आयीं हैं

सबसे पहले शोभा देखते हैं नूरी ताल रोंस की --अति उज्जवल हीरा की रोंस ---दायीं और नजर की तो ताल की शोभा --लहराता निर्मल जल और ठीक मध्य भाग में टापू मोहोल की अद्भुत शोभा --कमल के मान्निद खिला खिला सा हमारा टापू मोहोल --और ताल के किनारे घेर कर आया अति सुन्दर रंगों नंगों से सुसज्जित कठेड़ा --तो कठेड़े के नजदीक आएं तो देखा की उतरती सीढियां --जल  चबूतरा पर ले जाने के लिये प्रस्तुत

और बायीं और नजर की तो भोम भर ऊंची चौरस पाल के चौथे हिस्से में शोभित कटी पाल की सीढियां -----इन सीढ़ियों की शोभा देखती हैं --घेर कर आयीं देहुरियों के आगे चबूतरें और उन चबूतरों से एक चांदा के तरह दोनों और उतरती सीढियां और इन उतरती सीढ़ियों के तरफ तो दिवार आयीं हैं और ताल तरफ कठेड़े की शोभा हैं --और जहाँ आमने सामने से सीढियां उतर रही हैं उन चौक में देहुरी की अपार शोभा
 और एक शोभा दिल को लुभाने वाली --ताल रोंस से लगते बड़े छोटे द्वार --                        

चौरस पाल पर तीन हार वृक्ष आएं हैं --पहली हार संक्रमणिक सीढियां चढ़ते ही चौरस पाल की किनारे पर आयीं हैं --वृक्षों की दो हारें 250 -250  मंदिर के अंतर पर और आयीं हैं तो चौरस पाल पर जल रोंस की तरफ वाली वृक्षों  की हार ने 1125 मंदिर छतरिमंडल बढ़ा कर  जल चबूतरे तक छाया दी है --ऊपर की और नजरें की तो   दो मंदिर उँचा फुलो पत्तियो का चंद्रमा सुशोभित है जिसकी नूरी झलकार से जल रोंस पर प्रतीत होता है मानो फूलों की गिलम बिछी हो                        
 इस तरह से शोभा देखते हुए 32  हान्स पर किया और आ पहुंचे नव  देहुरी के घाट के सामने

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

phulbag-nurbag me raman


 ए फूल बाग चौडा चबूतरा, निपट बडा निहायत ।
फूल बाग बगीचे चेहेबच्चे, विस्तार बडो है इत ।।🙏


आज चले हैं आप श्री राज जी श्री श्यामा जी के संग फूलबाग --नूरबाग  

खुद को महसूस करते हैं तीजी भोम की पड़साल पर 

रूह दिल में लेती हैं की आज फूल बाग़ चले तो रूहों के दिल की इच्छा उपजते हैं सुखपाल हाजिर --फूलों से सजे हुए सुखपाल आकर लग गए तीजी भोम की पड़साल से --

सुखपालो पर बड़ी ही नजाकत से अर्शे मिलावा बैठ रहा हैं --उन समय की लीला अद्भुत हैं --वस्त्रा भूषण की मीठी ,सुंदर झिलमिलाहट आसमान को छू रही हैं --आभूषणों की मीठी झंकार                        
सुखपालों ने उड़ान भरी फूलबाग की और ---धाम धनि ने सबसे पहले रूह को दिखाई चांदनी चौक की शोभा --आसमान की ऊंचाइयों से चांदनी चौक के नज़ारे --अद्भुत स्वेत आभा से जगमगाहट करना धाम का नूरानी चौक --लाल हरा वृक्ष की जोत और रेती --नूरी रेती आज मानों श्वेत फूलों सी खिल उठी हैं वह भी स्वलीला अद्वैत में शामिल हैं

 फूलों सी खिल उठी आज रेती --सुगन्धि के झोंके सहला रहे हैं

चांदनी चौक की शोभा देख अब आगे बढ़ते हैं सुखपाल हमारे --उल्लास का समां --हर रूह की चाहना मेरा सुखपाल धनि के संग हो --कोई आगे तो कोई पीछे --धनि से ऊंची आवाज में बाते करना तो कभी उनके मुखारबिंद को निरखना --    








लीलाएं कर ,कलाबाजियां करते पशु पक्षियों के जूथ के जूथ --धनि को रिझावन की चाह लिए

 वनो की शीतल सुगन्धित चांदनी --फूलों ,पत्तियों ,डालियों ने एक रूप मिलाकर शीतल अति सुन्दर छत्रीमण्डल बनाया हैं --जाम्बु वन की चांदनी की शोभा देखते हुए नारंगी वन की चांदनी पर आन पहुंचे -- चांदनी पर नूरी तितलियों की अठखेलियां


नारंगी वन से सुखपाल दक्षिण दिशा की और हुए और बट पीपल चौकी की चांदनी पर हैं अब सुखपाल --आसमान में बादलों के बीच में से बट पीपल चौकी की चांदनी की शोभा धनी ने दिखाई --विशाल फूलों से खिली चांदनी --चांदनी के उत्तर दिशा में रंगमहल की अलौकिक शोभा धनी से दिखलाई और दक्षिण में कुंज निकुंज की मनोहारी शोभा हैं --चांदनी के चारों कोनों पर चहबच्चे सुशोभित हैं जिनसे मोतियों सा झिलमिलाता जल उछल रहा हैं


                        चौकी की चांदनी के आनंद लिए अब सुखपाल बढ़ते हैं रंगमहल की पश्चिम दिशा की और --बट पीपल की चौकी से होते हुए पश्चिम आये --फूलबाग की चांदनी की अपार शोभा --सुगन्धि से महकता आलम --विशाल चांदनी फूलबाग की --अति सुन्दर मनोहारी शोभा लिए --सुखपाल फूलबाग की चांदनी पर उतरे --

फूलों से खिली अति मनोरम --कोमल चांदनी --चांदनी पर अर्शे मिलावा उत्तर रहा हैं --युगल स्वरूप उतरे ,सखियाँ उत्तर रही हैं उतरते समय पायलों की ,घुघरियों की मधुर झंकार और चांदनी में धंसते पाँव --आप श्री युगल स्वरूप ,सखियों के आगमन पर चांदनी और भी महकने लगी और फूलों की ही सिंगहैं कुर्सियां हाजिर --उन बैठकों पर विराजमान हुए धाम दूल्हा और हम सब  सखियाँ






 धाम दूल्हा की मेहर से रूहों ने सर्व प्रथम शोभा देखी चांदनी की --अति सुन्दर चांदनी --फूलों का अद्भुत चेतन चित्रामन और फूलों के छोटे छोटे पक्षी ---नूरी पक्षीं उड़ान भरते हुए --उन पक्षियों ने उड़ान भरी और रूह हाथों का स्पर्श पाते ही फूलों की माला बन मुस्करा उठे

चांदनी के चारों कोनों पर सोलह हान्स के विशाल ,बुजरक चेहेबच्चों से उठते फुहारें ..ये फुहारे मानों आकाश को छू रहे हैं --फूलों सी लगती जल की नूरी बुंदिया और फूल की शोभा बनाते फुहारे


चांदनी की पूर्व दिशा में रंगमहल की अति मनोहारी शोभा --भोम दर भोम आएं रंगमहल के छज्जे भी फूलों से सज उठे हैं ,मंदिर भी फूलों के प्रतीत हो रहे हैं झरोखों की शोभा तो देखिए --

: चांदनी के उत्तर ,दक्षिण और पश्चिम दिशा में बडोवन के वृक्षों  की अति सुन्दर शोभा आयीं हैं जिनकी मेहराबों में झूले लगे हैं

शोभा देख रहे हैं फूलबाग की चांदनी की --चारों कोनों में आएं बुजरक फुहारों की बुँदियाँ जब चांदनी पर पड़ती हैं तो चांदनी अति सुन्दर प्रतीत होती हैं --भीगा भीगा सा समा --श्री राज जी के लाड ,इश्क में गर्क



रूह ने श्री राज जी के संग होने का सुखद अहसास का अनुभव कर चांदनी का अनुभव किया --फूल बाग़ की दो भोम तीसरी चांदनी आयीं हैं अब अर्शे मिलावा चलता हैं फूल बाग़ की दूसरी भोम में --मन चाहि पातशाही --दिल में उपजते ही खुद को दूसरी भोम में देखा



फूलबाग की दूसरी भोम की अद्भुत शोभा रूहें देख रही हैं --फूलों की अजब शोभा --नूरी फूलों की नूरी सुगन्धि --नीचे फूलों की गिलम बिछी हुई प्रतीत हो रही हैं और ऊपर फूलों का चन्द्रवा --मनोरम दृश्य --फूलों में प्रगट होते नूरी फूलों के वृक्षों के तने


फूलों की अति सोहनी शोभा --कहीं एक ही रंग में खिले फूल तो कहीं एक ही रंग में बेशुमार रंगों की झलकार --तीन तीन मंदिर की दुरी पर नूरी वृक्षों के मध्य बने नूरी चौक जिनमें अति सुन्दर बैठके बनी हैं

युगल स्वरूप श्री राज जी श्यामा जी के संग रहे यहाँ सुख लेती हैं --पशु पक्षी आ आकर तरह तरह के करतब कर रिझाते हैं --मोर का नृत्य ,तोतों की उड़ान ,खरगोशों की चंचलता ,बंदरों की उछल कूद

 और फूलों की मस्तियाँ --खिलते फूल तो पंखुड़ी समेटते फूल भी धनी को प्रसन्न कर रहे हैं



श्री राज जी के संग इन फूलों की वादियों में रमण कर रही हैं --शीतल ,मनोरम ,सुगन्धित ,चेतन और उल्लसित हर शह --जहाँ से निकले वहीं फूलों की विशेष शोभा --देखिए रूह अपने हाथों से नूरी फूलों का सिनगार तैयार कर श्री राज जी श्री श्यामा जी को सिनगार सजा रही हैं --पक्षी भी आये

उनमे भी तो श्री राज जी का धाम ह्रदय ही क्रीड़ा कर रहा हैं
 अब चलना हैं फूल बाग़ की तले की भोम --फूल बाग़ की चांदनी ने रंगमहल की तीजी भोम के छज्जो से मिलान किया हैं और दूसरी भोम का मिलान रंगमहल के दूसरी भोम के छज्जों से हुआ हैं तो रूह इन छज्जों से होती हुई मंदिरों में आती हैं और भोम भर नीचे उतर कर पहली भोम के मंदिरों में पहुँचती हैं                        

 आप श्री युगल स्वरूप और रूहें  मंदिर की वन की तरफ वाली बाहिरी दीवार की और नजर करते हैं अति मनोहारी शोभा --दो द्वारों से आती फूल बाग़ की सुगन्धि और खुशबु --छः जाली द्वारों से झलकती शोभा
ठीक मध्य की मेहराब में एक सुन्दर सा छोटा दरवाजा --उन द्वार के भीतर गए तो तीन सीढ़ियां चढ़ती हुई --सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर आये तो खुद को रूहें झरोखे में देखती हैं --सखियाँ इस तरह से 1500  मंदिरों के झरोखों में बैठती हैं

 यहाँ से दर्शन करती हैं धाम रोंस के --धाम रोंस भी फूलों की रोंस प्रतीत हो रही हैं                        

 धाम रोंस से लगती पहली आडी नहर --अद्भुत शोभा जल में डूबे चहबच्चे जिनसे फुहारे चल रहे हैं --3000  फुहारों की शोभा अति प्रिय हैं जब एक साथ उछलते हैं तो जल की नूरी दीवार की शोभा बन जारी हैं


यहाँ से दर्शन करती हैं धाम रोंस के --धाम रोंस भी फूलों की रोंस प्रतीत हो रही हैं            



धाम रोंस से लगती पहली आडी नहर --अद्भुत शोभा जल में डूबे चहबच्चे जिनसे फुहारे चल रहे हैं --3000  फुहारों की शोभा अति प्रिय हैं जब एक साथ उछलते हैं तो जल की नूरी दीवार की शोभा बन जारी हैं

 फूल बाग की अति मनोरम शोभा रूहें देख रही हैं --दस बड़े बगीचों की अपार शोभा फिर एक एक बगीचे में कई बगीचे --     


एक बगीचा पर नजर गयी तो चारो दिशा में अति सुन्दर नेहरे और चारों कोण पर चेहेबच्चों की शोभा दिख रही हैं --फूलों की बेशुमार शोभा --श्वेत फूलों से खिला खिला बगीचा तो कहीं लाल रंग में सज रहा हैं -- नीला तो कहीं अपार रंग एक ही फूल में --खुशुबू ,नरमाई का तो कोई पारावार ही नहीं हैं





नहरों चेहेबच्चों की शोभा के बीच में फूलों की अजब शोभा --फूलों की तरह उछलते फुहारे





सुन्दर फूलों की रोंसे जगमगा रही हैं --नहर किनारे आयी बैठकों के आनंद रूह लेती हैं

फूलों की रोंस पर दौड़ना --श्री श्यामा जी के संग रूहें नूरी फूलों के अपार सुख लेती हैं

फूल बाग नूर बाग की छत पर शोभित हैं |आड़ी खड़ी नहरों के दरम्यान 100 बगीचों की शोभा श्रीराज जी रूहों को दिखलाते हैं | एक एक चौक की शोभा रूह देखती हैं |एक प्यारी सी शोभा -एक चौक में तीन-तीन आड़ी खड़ी नहरें आने एक चौक में छोटे छोटे सोलह बगीचे सुशोभित हैं | अब इनमें एक एक चौक में मनोहारी शोभा को देखिए साथ जी -इन चौकों में तीन तीन मंदिर की हद में वृक्षों की शोभा आईं हैं |रंग-बिरंगे फूलों की सोहनी जुगत और प्रत्येक चौक को घेर कर नहरो चहेबच्चों की बेशुमार शोभा आईं हैं 


फूल बाग की शोभा अब चलना हैं नूर बाग़    

मेरी रूह फूल बाग में रमण विहार करने के बाद ,वहां के सौंदर्य ,नरमाई और सुगंधी के अखंड आनंद ले कर रूह नूर बाग की और चलती हैं |


  प्रियतम श्री राज जी ने कितनी अद्भुत मार्ग दिखलाया हैं नूर बाग में जाने का -,फूल बाग के बड़े बगीचे के सामने रंगमहल की पश्चिम दिशा में जो 150 मंदिर आएं हैं | इन मंदिरों मे ठीक मध्य जो 75-76 वां मंदिर हैं उसके पाखे की दीवार में 33 हाथ की मेहेराब आईं हैं | मेहेराब में फूल बाग की दिशा में सीढ़ियां उतरी हैं |


100 सीढ़ी 5 चांदे पार कर मेरी रूह नूर बाग की और जा रही हैं | सीढ़ियों पर आया गिलम इतना कोमल है कि घुटनों तक पांव धंस रहे हैं | गिलम की जोत की झलकार और दोनों ओर की दीवारों में मनोहारी चेतन चित्रामन की जोत अत्यंत ही सुहावनी प्रतीत हो रही हैं |ऐसे मानो कि फूलों की सुरंग से रूह नीचे उतर रही हैं और नूरी फूलों की सुगंधी रूह को इश्क मे गर्क कर रही हैं |
100 सीढ़ी 20 चांदे पार कर के रूह एक झरोखे में खुद को महसूस करती हैं |रंगों -नंगों से सुसज्जित झरोखा और मेरी रूह सखियों को संग में लेकर प्यारी सी ,मतवाली अदा से  नूर बाग की रोंस पर आती हैं | रोंस भी आशिक –देखिए ना रोंस ने अति कोमल होकर रूहों को मानो अपनी बाँहों में समेत लिया हो |


नूर बाग की शोभा फूल बाग की तरह ही आईं हैं |फूल बाग की तरह ही 100 बड़े बगीचे आएं हैं जिनके चारों और नहरे चल रहीं हैं |चारों कोनों में आएं चहेबच्चों से फूलों के मानिंद फव्वारे उठ रहे हैं |प्रत्येक बड़े बगीचे में आड़ी-खड़ी नहरों की शोभा आने से एक चौक में सोलह बगीचे बने हैं |जिनमें फूल बाग की तरह ही तीन तीन मंदिर की दूरी पर फूलों के वृक्ष आएं हैं |ऊपर -नीचे हर और फूल ही फूल ,उनकी सुगंधी का साम्राज्य–   

एक प्यारी सी शोभा हैं जो नूर बाग को और भी नूरी बनाती हैं वो हैं -नूर बाग में बड़े बगीचों को घेर कर आईं नहरों में नूर के थम्भ शोभित हैं जिनकी छत पर फूल बाग शोभायमान हैं |नूर के यह थम्भ एक एक मंदिर की दूरी पर स्थित हैं |इन थम्भों में से फूलों का प्रतिबिंब की झलकार रूह को अखंड सुख देती हैं