गुरुवार, 10 सितंबर 2020

DHAM SIDHIYAN

 

 


 

मेरी रूह --गुम्मद जी में नमन कर रही हूँ --युगल स्वरूप श्री राज श्यामा जी के चरणों को दिल में लेती हैं रूह खुद को देखती हैं - पीया श्री राज जी श्यामा जी और धाम सखियों के संग धाम की विशाल सीढ़ियों पर

विशाल अति सुन्दर शोभा लिए नूरी सीढ़ियां --सीढ़ियों के दोनों और कठेडों की अलौकिक शोभा --कठेड़े में आयें नूरी चित्रामन --चेतन --श्री राज श्यामा जी और सखियों के क़दमों की आहत पाते ही झूम उठे --पशु पक्षी तुहि तुहि पिऊपिऊ की गुंजार कर तरह तरह के करतब कर रहे हैं --नूरी वृक्षों में खिले फूल अपनी सुंगन्धि और भी बढ़ा रहे हैं कोमल हो रहे हैं और वृक्ष भी तो पीऊ का आशिक --उनके आगमन पर फूल बरसा अभिनन्दन कर रहा हैं --और चित्रामन की पुतलियाँ नृत्य कर उठती हैं --

कोई सखी धनि संग सीढ़ी पर खड़ी हैं उनसे बातें कर प्रसन्न हो रही है तो कुछ चांदनी चौक की नूरी नरम रेती में रमन कर रही हैं तो कोई चबूतरों पर बैठ हांस विलास कर रही हैं --नूरी समा --चित्त चाहया मौसम --कभी खिली खिली मीठी धुप तो छाँव और बदलियों का उमड़ उमड़ कर आना --बरखा में पीऊ संग सुख रहें ले रही हैं --

अब चलना हैं धाम भीतर --तो धनि संग सखियाँ ऊपर चढ़ने के लिए कदम धरती हैं --सीढ़ी बेहद ही कोमल प्यारा सा अहसास करा रही हैं --आओ में धाम धनि --आपका अभिनन्दन हैं --सीढ़ियों की सुन्दर शोभा --कठेड़े की सुन्दर शोभा --निरखते धनि संग सीढ़ियां चढ़ रहे हैं --मधुर संगीत लहरी --सखियों के कदम थिरक उठते हैं पीऊ के संग धाम की सीढ़ियां बेहद ही प्यारी लग रही हैं --आभूषणों की मीठी मीठी झंकार --और चांदा की न्यारी शोभा --कुछ पल रुकिए --की मीठी आवाज --

चांदो की प्यारी सी शोभा --सीढ़ियां --चांदे सुन्दर अति सुन्दर शोभा और जब श्री राज श्यामा जी यहां आयें तो उन शोभा का क्या वर्णन हो--हँसते खेलते सीढ़ियां चढ़ धाम दरवाजे के सन्मुख पहुंचे -- 

बुधवार, 6 मई 2020

चांदनी चौक-MEDITATION

रंगमहल की पूर्व दिशा में अमृत वन के तीसरे हिस्से में १६६ मंदिर का लंबा चौड़ा चांदनी सुशोभित हैं

खुद को महसूस कर मेरी रूह चांदनी चौक में और मुख श्री रंगमहल की और --तो ठीक मध्य में दिखाई दे रही हैं --दो मंदिर की अति सुंदर रंगों नंगों से झिलमिलाती रोंस --देख तो मेरी रूह कैसे तुझे धाम सीढ़ियों तक पहुँचाती हैं

धाम की और बढ़ते समय चांदनी चौक की नूरमयी रेती की नरमाई महसूस होती हैं --मोती हीरा की माफिक जगमगाती धाम की नूरी रेती का तेज आसमान तक झलकता हैं

उत्तर हाथ को लाल वृक्ष की शोभा आयीं हैं तो बायीं और हरे वृक्ष की अपार शोभा आयीं हैं

                        सखी चलते हैं अपने दायीं और लाल वृक्ष की और ---रेती में कदम रखे तो दो खुनी ,तीन खुनी ,चौखुनी ,अति नरम रेती में पाँव घुटनों तक धंस रहे हैं

 मानो रेती भी रूह को अपने पास रुक जाने को कह रही हैं --सखी रुक ..कुछ पल मुझसे भी गुफ़्तुगू कर                        

 रेती की नरमाई ,सुगंधि को महसूस करते हुए ,रेती में अठखेलियां करते हुए लाल वृक्ष की और बढ़ रहे हैं --रेती के नूरी कण मेरी रूह के नूरी तन से स्पर्श कर आभूषण बन खिल उठे हैं
उत्तर दिशा में आएं चबूतरे के नजदीक पहुंचे ---33  मंदिर का लंबा चौड़ा चबूतरा चांदनी चौक की रेती से तीन सीढ़ी ऊंचा आया हैं ---चबूतरा के चारों दिशा में आठ मंदिर की जगह में अति मनोहारी शोभा लिये सीढियां चांदनी चौक में उतरी हैं --शेष जगह घेर कर कठेड़ा आया हैं                        

श्री राज जी की मधुर पुकार --आओ मेरी सखी ,चबूतरा पर चले ---सीढ़ियों पर कदम रखे --अत्यंत ही कोमलता लिये सीढ़ी मानों और भी कोमल हो रही हैं कि मेरी सखी आयीं हैं

श्री राज श्यामजी जी के संग हम सखियाँ हाथों में हाथ थामें चबूतरा पर चढ़ कर आएं और धनी जी दिखा रहे हैं चबूतरा की अलौकिक अद्भुत शोभा

सर्वप्रथम देखा --चबूतरा को घेर कर आयीं रेलिंग --में वीणा के तार सजे हुए --


रूह ने जैसे ही हाथों से छुआ --मधुर स्वर लहरी --और संगीत की मधुर लहरी के साथ ही सिंहासन कुर्सियां हाजिर चबूतरा पर -आओ मेरी सखियों ,विराजिए

नूरी सखियों पर सखी हम भी बड़ी ही अदा से ,नजाकत से कुर्सियों पर विराजमान हुए --सामने युगल स्वर की मनमोहनी छबि

चबूतरा पर नूरी फूल कुछ इस तरह से बिछे हुए मानों अति कोमल गिलम  बिछा हो                        

नूरी फूलों पत्तियों की अजब शोभा के बीच में एक मंदिर का मोटा तना उठा --     
                   
 अति नूरी शोभा लिये नूरी जगमगाहट से धाम को रोशन करता तना जिसके चारों दिशा में फूलों से सुसज्जित द्वारों की शोभा आयीं हैं

 तना सीधा 75  हाथ  सीधा ऊपर जाकर हर दिशा में 34 -34  मेहराबे बड़ा  रहा हैं --डालियों ,फूलो, पत्तियों ने मिलकर अति सुंदर छत दी हैं चबूतरा पर --बीच में सुखदायी झलकार करता हुए नूरमयी ताने की शोभा ,ऊपर फूलों का नूरी चंदवा ,निचे चेतन फूलों ने गिलम पेश की हैं --ऐसे सुंदर समां में युगल पीया जी के संग चबूतरों पर आयीं पीया की आत्म स्वरूप नूरी कुर्सियों पर विराजमान हुए हम --                        
 सामने पशु पक्षियों के जूथ जूथ उमड़ पड़े दीदार के लिये ,प्रेममयी क्रीड़ा करके धाम धनी को रिझावन खातिर                        
मोरो का नृत्य ,पक्षियों की उड़ान --उनके दिल को भाने वाले करतब  और धाम के नूरी बंदरों की कलाबाजियां --कुछ पल इनका आनंद ले अब उठते हैं दूजी भोम के भी कुछ नजारों के दर्शन कर लें हम                        
 यहाँ से उठकर तने में आएं सुंदर द्वार से भीतर प्रवेश किया तो भीतर अत्यंत विशालता लिये विस्तार --फूलों की नूरी बैठके और सुन्दर सीढ़ी चढ़ती हुई --फूलों पत्तियों से सुसज्जित --सुगंधि का आलम और नूर की किरणों से रोशन हर शह --उल्लास में भीगे ,अंग अंग में आनंद झलकता हुआ सीढ़ियों से चढ़कर वृक्ष की दूसरी भोम में आ पहुंचे --                        

वृक्ष की दूजी भोम --क्या अजब नजारा हैं --३ मंदिर की लंबी चौड़ी फूलों की छत के मध्य से प्रगट होता हुआ वृक्ष का नूरी तना जो ७५ हाथ सीधे जाकर डालियाँ बढ़ाकर कर सुन्दर छत्रिमंडल कर मोहोल रूप में शोभित हो रहा हैं --चारों और से खुले फूलों से आच्छादित मेहराबी द्वार --हर जोगबाई फूलों पत्तिययों की --सेज्या ,सिंहासन ,हिंडोले सभी फूलों के अति नरम सुखदायी और तीसरी चांदनी पर फूलों की सुन्दर देहुरी और उस पर आया कलश ध्वजा