शनिवार, 29 सितंबर 2018

mulmilave ki or

मेरी रूह चौथी चौरस हवेली को पार कर अब आगे बढ़ती है --नूरमयी गली अनुपम शोभा लिए पार की --नूर से झिलमिलाते थंभों की नूरी हार पार कर रही है रूह 

आगे एक नूरी गली जुदि  जिनस से सजी ,सुगन्धि धाम की

 रूह दिल में अति प्रेम ले आगे बढ़ रही हैं --नूरी नज़ारे धाम के --जावेराहातों से झिलमिल करते नूरी थंभों की हार गोलाई में घूमती हुई रूह को प्रिय लग रही हैं ---और आगे रूह बढ़ रही है सामने पांचवी गोल हवेली 

मेरी रूह का मूल मिलावा

मेरी रूह उल्लास से आगे बढ़ रही हैं --पीया मिलान की आस ले --सामने हरी आभा से महका नूरी दरवाजा 

मेरी रूह मुलमिलावे की हवेली के मुख्य दरवाजा से होती हुई भीतर आती हैं

अति सुन्दर समा ,अद्भुत शोभा --घेर कर नूरी हार रंगों नंगों में झिलमिलाते उनके अतिशय सुन्दर दरवाजे --उनमे आये चित्रामन चेतनता लिए रूह को सस्नेह अभिवादन कर रहे हैं --चारों दिशा से नूर की लहरें आती हुई रूह को इश्क में भिगोती हुई

रूह हरित आभा से लबरेज नूरी मार्ग से आगे बढ़ रही हैं --धाम धनि की खुशहाली --पीया जी से अंग संग मिलने का उल्लास अंग प्रत्यंग में --
रूह बढे ही प्रेम से उल्लास से आगे बढ़ रही हैं --एक एक कदम रूह को धाम धनी के सम्मुख ले जाता हुआ --

रूह और आगे बढ़ी तो सामने ठीक मध्य भाग में पहलदार गोलाई लिए कमर भर ऊंचा नूरी चबूतरा --चबूतरा की दीवार में आयी अद्भुत नक्काशी --मनोहारी चित्रामन --युगल पीया श्री राज श्यामा जी के संग लिए सुखों की अनुभूति इन चित्रामन में --
हिंडोलों में पीया जी के संग झूलना ,वनों में रमण ,असवारी के अनंत सुख ,झीलन के अपार सुख और अपने हाथों से धनी को सिंगार कराना --

इन सुखद अहसासों में मग्न रूह चबूतरा की नूरी सीढ़ियों के सन्मुख पहुंची --

मेरी रूह अति ही प्रसन्न ,प्रेम में डूबी चेतन सीढ़ी पर कदम रखती हैं तो चेतन सीढ़ी रूह को चबूतरा तक पहुंचा देती हैं --
अति सुन्दर अहसास --मनोहारी शोभा लिए चबूतरा किनार पर आये नूरी थम्भ- मेहराबे और चारों दिशा में आये दरवाजे

दायी और पुखराजी आभा  से खिला हुआ द्वार रूह को धामधनी श्री राज जी की और उन्मुख करता हुआ और बायीं और माणिक का दरवाजा रूह को इश्क की पूर्णता का अहसास करा हैं
 सामने पश्चिम की और नीलवी का द्वार रूह को इश्क में लबरेज कर रहा हैं --आमने सामने आये नूरी पीया के आशिक चेतन थंभों की सोहनी झलकार --हीरा की जगमगाते थम्भ के सामने हीरे का थम्भ -लसनिया के नूरी थम्भ के सामने लसनिया का थम्भ शोभा लेता --नूरी अजब शोभा
और  थम्भों को भराए कर के नूरमयी ,अत्यंत ही सुंदर ,महीन -महीन नक्काशी से सज्जित और मोतियों की लड़ो से शोभित चंद्रवा की मनोहारी शोभा ---चबूतरे की किनार पर आएं थम्भ ,उनकी महेराबे ,थम्भों पर शोभित चंद्रवा ,नीचे नूरी ,नरम दुलीचे की जोत ,उनकी तरंगे आपस में युद्ध करती हुई मनोरम प्रतीत हो रहीं हैं मेरी रूह को

देखते  देखते रूह आगे बढ़ रही हैं नरम कोमल पश्म --पाँव धंसते हुए प्रतीत हो रहे हैं

मेरी रूह देखती है वह नूरानी दृश्य जिसका दीदार रूह को उल्लसित कर रहा हैं --नूरी पश्मी गिलम में खिले नूरी शोभा लिए कमल के नूरानी फूल पर शोभित युगल पीया जी का कंचन रंग में लालिमा बिखरेते --खुशियों की बरखा करता अति सुन्दर सिंघासन --

चित्रामन में आया कमल का फूल खिलता हुआ प्रतीत हो रहा है और बेशुमार पंखुड़ी के विशाल नूरी फूल पर रखा मेरी रूह के धामदुलहा का सिंघासन --सिंघासन के पाए फूल की शोभा ले रहे है ऐसा लग रहा हैं की नूरी फूल पर सुन्दर बैठक --जिसमें  छः डांड़े आएँ हैं | जिन पर अद्भुत चित्रामन जगमगा रहा हैं और उन पर नूरी ,चेतन फूल खिले है | एक एक डांड़े में दस दस रंग जवेरो के झलकते हैं |(मोती ,रतन,माणिक ,हीरे ,हेम ,पाने पुखराज ,गोमादिक ,पाच पिरोजा ,प्रवाल ) |

इन नूरी अति सुन्दर बैठक और भी प्यारी लग रही है जब कलश की शोभा आती है --अति सुन्दर शोभा लिए कलस 

इन नूरी अद्भुत शोभा लिए सिंघासन के पिछले तीन डांड़ो के मध्य दो तकिए हैं |जिन पर भी अनेक प्रकार की कई सूक्ष्म अत्यंत ही मनोहारी चित्रण हैं |चारों थम्भो पर चारों ओर से चढ़ती कांगरी सुशोभित हैं | कांगरी में कई प्रकार के नूर से भरे फूल ,पत्ते ,बेलें और महीन कटाव आएँ हैं |

और सिंहासन स्वरूपी सुन्दर सुखदायी बैठक  पर एक गादी दो पशमी चाकले और दो तकिये पीछे दो दाएँ -बाएँ और मध्य मे एक तकिया रोशन है |सुखदायी बैठक मेरे धनि की

मेरी रूह के धाम धनि ,मेरे प्राण वल्ल्भ श्री राज जी श्री ठकुरानी जी दोऊ नूरी सुखदायी चाकले पर विराजमान हैं |श्रीराज जी का बाँया चरण कमल नूर की चौकी पर और दाँया चरण बायी जाँघ पर  है |मेरी रूह उनकी इन चब को देख निसार जाती हैं और श्री श्यामजी महारानी जी दोनो श्री चरण कमल नूर की चौकी पर रख मुस्करा रही हैं