मंगलवार, 12 सितंबर 2017

 चले अपनी रूह की निज नजर से तीजी भोम की पड़साल की अलौकिक लीलाओं के दर्शन करे                        
आप पिया श्री राज जी श्री श्यामा जी प्रातः काल पांचवीं भोम से उठ कर तीसरी भोम सब सखियों के संग पधारते हैं --उन समय के सुखों को याद कर मेरी रूह जब प्रीतम श्री राज जी श्री श्यामा जी सब साथ को ले तीसरी भूमिका के नूरमयी चौक २८ थम्भ के चौक में आन खड़े होते हैं                        
 अब यहाँ से हमारे युगल स्वरूप श्री राज जी श्री श्यामा जी चलेंगे तीजी भूमिका की पड़साल की और --वहां चलने से पहले श्री राज जी रूहों को दिखा रहे हैं  28  थम्भ के चौक की अलौकिक नूरी शोभा --देख तो मेरी सखी घेर कर नूरमयी थंभों की सोहनी झलकार ,उनसे उठती किरणे सम्पूर्ण  वतन को रोशन कर रही हैं --ऊपर नूरी चंदवा की जगमगाहट और नीचे अति कोमल पशमी गिलम ---और देख मेरी सखी दायीं और दूसरी हार मंदिरों का लगता मंदिर कैसे आसमानी रंग में सुशोभित हैं यह तेरी श्यामा जी महारानी के सिंगार का मंदिर हैं
अब यहाँ से हमारे युगल स्वरूप श्री राज जी श्री श्यामा जी चलेंगे तीजी भूमिका की पड़साल की और --वहां चलने से पहले श्री राज जी रूहों को दिखा रहे हैं  28  थम्भ के चौक की अलौकिक नूरी शोभा --देख तो मेरी सखी घेर कर नूरमयी थंभों की सोहनी झलकार ,उनसे उठती किरणे सम्पूर्ण  वतन को रोशन कर रही हैं --ऊपर नूरी चंदवा की जगमगाहट और नीचे अति कोमल पशमी गिलम ---और देख मेरी सखी दायीं और दूसरी हार मंदिरों का लगता मंदिर कैसे आसमानी रंग में सुशोभित हैं यह तेरी श्यामा जी महारानी के सिंगार का मंदिर हैं                        

अब श्री राज जी श्री श्यामा जी को साथ में ले कर बढ़ते हैं तीजी भोम की पड़साल की और --संग में हम सखियाँ भी हैं 
चलते समय गिलम की कोमलता को महसूस कर मेरी रूह --कितनी कोमल ,नरम गिलम मानो और भी कोमल हो धाम धनि का अभिनन्दन कर रही हो --आ पहुंचे 28  थम्भ के चौक की पूर्व किनार पर --चौक के ठीक आगे लगता चार मंदिर का लंबा एक मंदिर चौड़ा चबूतरा की शोभा देखे
 चार मंदिर के सोहने चौक से 28  थम्भ के चौक में उतरती सीढ़ियों की शोभा बेहद ही प्यारी हैं --प्रियतम श्री राज जी श्री श्यामा जी अपने पाँव मुबारक बढ़ाते हैं पहली सीढ़ी की और --ओहो मेरे धाम दूल्हा के नूरानी चरण ,उनकी नूरानी छबि,गौर वर्ण में लालिमा लिये मेरे महबूब के चरणारविन्द --सीढ़ी चढ़ते समय उनके आभूषणों की मधुर झंकार रूहों को घायल कर रही हैं                        

 अक्षरातीत श्री राज जी श्री श्यामा जी सब रूहों को संग ले चार मंदिर के चौक में आते हैं --चौक से 28  थम्भ के चौक में उतरती सीढ़ियों की शोभा तो रूहों ने महसूस की --अब देखे उत्तर दक्षिन दोनों दिशा में भी गली में सीढियां  उतरी हैं --दोनों दिशाओं में सीढ़ी की जगह छोड़कर कर नूरमयी कठेड़े की शोभा हैं इसी प्रकार से 28  थम्भ के चौक की और भी सीढ़ी की जगह छोड़कर कर नूरमयी कठेड़े की शोभा हैं --

चार मंदिर की नूरी शोभा में झिलते  अब चले दहलान की और श्री राज जी के संग --चार मंदिर के चौक से ठीक लगती दहलान की शोभा आयीं हैं                        
 चार मंदिर के चबूतरे के साथ मिलान करती चार मंदिर के दहलान धाम दरवाजे के ठीक ऊपर आयीं हैं --दो मंदिर की जगह तो हुई धाम दरवाजे की और एक एक मंदिर और ले कर चार मंदिर की दहलान की शोभा आयीं हैं --तो मेरी रूह दहलान के पूर्व पश्चिम दोनों किनारो  पर नूरी थम्भ झिलमिला रहे हैं --दहलान के उत्तर दक्षिन 3-3  मंदिर आएं हैं --मेरी रूह यह मंदिर भी श्री राज जी का प्रसाद हैं हम रूहों को --यह मंदिर भी समय आने पर दहलान रूप में परिवर्तित होकर रूहों को सुख देते हैं
 चार मंदिर के चबूतरे के समान चार मंदिर की दहलान भी तीन सीढ़ी ऊंची शोभायमान हैं --दोनों और आएं तीन तीन मंदिर भी तीन सीढ़ी ऊंचे हैं तभी तो देख मेरी रूह --मंदिरों से भीतर गली की और सीढियां उतरी हैं चांदा के रूप में --बाहिरी हार यह मंदिर भीतर गली से तीन सीढ़ी ऊंचे हैं तो वहां मंदिर के दरवाजे के आगे चांदा की शोभा आयीं हैं और चांदा से दोनों और गली में तीन तीन सीढियां उतरी हैं                        

 दहलान की शोभा देख आगे बढे तो आ पहुचे तीजी भोम की पड़साल पर --दस मंदिर की लंबी और दो मंदिर की चौड़ी --चांदनी चौक की और -यह नीचे जो दो मंदिर का चौक आया हैं और चौक के दोनों और चार मंदिर के लंबे चबूतरे आये हैं उन पर तीसरी भोम में जो एक छत आयी हैं वहीं हैं तीजी भोम की पड़साल

तीजी भोम की पड़साल की पूर्व किनार पर थंभों की शोभा आयीं हैं यह थम्भ वहीं हैं जो पहली भोम से चले आ रहे हैं --ठीक मध्य में हीरा के दो थम्भ दो मंदिर की दुरी पर आएं हैं और दोनों और क्रमशः माणिक ,पुखराज ,पाच और नीलवी के थम्भ सुशोभित हैं --


मध्य में हीरा की दो मंदिर अति सुंदर मेहराब में अति सुंदर माणिक के नूरी फूल --और दोनों और दो दो रंगों में खिली खिली मेहराबे --थंभों के  मध्य स्वर्णिम कठेड़े की शोभा                        
 श्रीराज-श्री ठकुरानी जी मध्य की मेहराब में खड़े होते हैं और दाएं बाएं की मेहराबों में 12000 सखियाँ खड़ी होती हैं -तीजी भोम की विशाल--अलौकिक जोत से झलकार करती हुई --शीतल सुगन्धित हवा के झोंके --ऐसे प्रीत भरे नूरी आलम में युगल स्वरूप श्री राज श्यामा जी मध्य में शोभित हीरा की दो मंदिर की मेहराब में खड़े होते हैं ..दायीं बाईं सखियाँ ..उमंग से भरी ,मुख्य प्रसन्नता से दमकते हुए --इन्हें समय सामने चांदनी चौक में पशु -पक्षी उमड़ उमड़ कर आते हैं --सभी जातियों के पशु-पक्षी --दिल में प्रियतम के दीदार की आस लेकर आते हैं --श्री राज-श्यामा जी की एक इश्क रस भरी नजर का दीदार पाकर उल्लसित हो उठते हैं --उन्हें सिजदा कर अनेक प्रकार के हुनर-कलाओं से प्रिया और प्रियतम को रिझाते हैं --इनके हुनर को देख -देख कर सखियाँ अति प्रसन्न होती हैं --हक़-हादी और सखियाँ खूब हँसते -हंसाते हैं ।तब नूर जमाल के आनंद मस्ती में आकर नूरी पशु-पंखी ,जिनकी सुंदरता का कोई पारा-वार नहीं हैं ,प्रेम की मस्ती में अलमस्त होकर नृत्य कर उठते हैं ।

ऐसे अखण्ड आनंद के समय प्रियतम श्री राज जी के इश्क की शराब में मदमस्त होकर बन-बगीचे ,मोहोलातें ,महल ,मंदिर ,आकाश ,जमीन सभी सिजदा करते हैं --इन समय बड़ा ही मनमोहक दृश्य दृष्टिगोचर होता हैं --और जमुना जी का नूरी जल और उनके उछालें लेती लहरें भी पिऊ का दीदार करना चाहती हैं --तब इन समय में अक्षरातीत श्री राज जी अपनी मेहर की नूरी दृष्टि से अमृत बरखा करते हैं --मेहर की नूरी इश्कमयी की बरखा में सब कोई भीग कर उल्लासित हो
दर्शन देने के बाद  सखियाँ श्री राज जी महाराज जी को चार मंदिर की दहलान में आभूषणों का श्रृंगार कराती हैं और श्री श्यामा जी का सिंगार 28  थम्भ के चौक  के दक्षिण दिशा में दूसरी हार के आसमानी मंदिर मे होता हैं |बाहिरी हार मंदिरों की जो 6000 मंदिरों की दो हारें आईं हैं --इन मंदिरों में सखियाँ एक दूजे को श्रृंगार कराती हैं झूम उठते हैं - --पिऊ-पिऊ,तुहि-तुहि की मीठी ध्वनि की झंकार से सम्पूर्ण परमधाम गुंजायमान हो जाता हैं